रामगढ़।
झारखंड स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह की पत्नी ने इप्सा शताक्षी कहा ने कहा की मेरे पति जिनकी गिरफ्तारी 17 जुलाई 2022 को एक केस के तहत की गई थी, पर पांच महीने बाद फिर एक नया केस थोपा जा रहा है। 17 जुलाई की गिरफ्तारी के एक महीने पूरे होने से पहले ही एक दूसरे केस में उनका नाम जोर दिया गया था। इसके अलावा एक ऐसा केस भी है जिसके नाम पर उनका प्रोडक्शन वारंट भी इशू हुआ, मगर अभी तक कस्टडी चालू भी नहीं की गई है। अब जब पांच महीने जेल में गुजर गए हैं, तब एक और केस में इन्हें जोड़ा जा रहा है। यह ऐसा केस है जिसकी अभी तक कोई जानकारी भी नहीं मिल पाई है। 24 दिसंबर को जब वीडियो कान्फ्रेसिंग कर पेशी कराई गई तब रूपेश को इस केस के बारे में पता चला।
जिस नये केस में इनका नाम जोड़ा गया है, वह 2018 का केस है यानी इसके बाद 2019 में भी रुपेश जी को (फर्जी केस में फंसाकर) गिरफ्तार किया गया था,वे जेल में छः महीने रहे भी थे, तब भी 2018 के इस केस का कहीं कोई अता-पता नहीं था। रुपेश अब जब पांच महीने जेल में बिता चुके हैं , तब उनके नाम पर यह केस दिखाया जा रहा है। अगर यह 2018 की किसी घटना से जुड़ा था, तो इतने सालों बाद और रूपेश के जेल में पांच महीने गुजरने के बाद इस केस का खुलासा क्यों किया जा रहा है?
इसके पीछे का कारण यही है कि एक केस में रूपेश जी कहीं बेल पर बाहर न आ जाए, इसलिए पांच महीने जेल जीवन के गुजरने के बाद नये केस में नाम जोड़ा जा रहा है यानी आने वाले कम से कम छः महीने जेल में रखे रहने का बंदोबस्त। यह सब उस राज्य में हो रहा है जिसके मुख्यमंत्री एक आदिवासी है, जहां आदिवासी महिला देश की राष्ट्रपति हैं, जो पहले झारखंड की राज्यपाल थी, उस राज्य के आदिवासी जनता के हक अधिकार के मुद्दों पर लिखने वाले पत्रकार के साथ यह सब हो रहा है। कोई भी रूपेश जी के लेखों को पढ़कर समझ सकता है कि उनकी लेखनी किस तरह से झारखंड की जनता के हक अधिकार की बात करती है और वह हक अधिकार की बात किस तरह जायज भी है, वैसे जमीनी लेखन करने वाले पत्रकार के खिलाफ ऐसी साजिश।
क्या हमारे मुख्यमंत्री इस सवाल का जवाब देंगे, कि ऐसे पत्रकार के खिलाफ ऐसी साजिश पर वे चुप क्यों हैं, बखूबी रूपेश की जनता के लिए समर्पण भाव से वे भी अवगत होंगे, आखिर खुद उन्होंने भी तो रुपेश जी के ट्वीट को भी रिट्वीट किया है। उनका रुपेश जी के मामले पर एक शब्द भी न कहना आदिवासी मूलवासी जनता के हक अधिकार पर चुप्पी है। यह झारखंड की जनता के हित के साथ खिलवाड़ है क्योंकि रुपेश जी की गिरफ्तारी से सबसे ज्यादा नुकसान अगर हुआ है तो वह झारखंड की जनता का है, जिनके मुद्दों को रूपेश जी अपने लेखन से उजागर करते थे। आज भी अगर रूपेश जी जेल के बाहर होते, तो शायद कई ऐसे मुद्दों पर जरूर लिखते जो बड़ी खबर होने के बाद भी दब कर रह गयी है। जनता के इस नुकसान की भरपाई कौन करेगा? साथ ही उनके साथ इस तरह की खिलवाड़ पत्रकारिता पर भी हमला है।उनके खिलाफ इस तरह की रवैए का जमीनी पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों को भी विरोध करना चाहिए, क्योंकि यह सिर्फ एक पत्रकार पर नहीं स्वतंत्र पत्रकारिता पर हमला है, निर्भीक और निष्पक्ष पत्रकारिता का गला घोंटने की एक शुरूआत है, रूपेश जी इस हमले के पहले और आखिरी जर्नलिस्ट नहीं है आगे यह पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर और भी तीखा होगा और तब इस तरह की लिस्ट में रूपेश जैसे चुनिंदे पत्रकार ही नहीं रहेंगे बल्कि हर वह पत्रकार होगा जो थोड़ी भी चापलूसी के परे होकर पत्रकारिता करना चाहेगा। एक व्यक्ति के साथ जब खिलवाड़ किया जाता है तो वह पहला प्रयास ही होता है परिणाम जानने का, हमें चाहिए कि रूपेश कुमार सिंह के लिए आवाज उठाए और पत्रकारिता की बची स्वतंत्रता को भी खोने से बचाए।